Monday, 8 December 2014

कहाँ गया ओ! बचपन मेरे




  
कहां गया ओ! बचपन मेरे
लेकर मस्‍ती भरे दिन सुनहरे

 झरते ही दो आँसू आँखों से माँ दौड़ी चली आती थी
पहले भरती आलिंगन में फिर अमृत जैसा दूध पिलाती थी 
पाकर ममता की मधुर खुराक 
देह ही नहीं आत्‍मा भी तृप्‍त हो जाती थी

लौटा दे मुझे वो ममताभरा आँचल
सुरभि माँ के शरीर की   
जब से छूटी उसकी देहरी
हुई मैं तो अनाथ-सी

किसे कब क्‍या चाहिए
बिन कहे पापा न जाने कैसे जान जाते थे
पंचतंत्र-हितोपदेश की कहानियों के बहाने
जीवन के नित नए पाठ पढ़ाते थे

एक मौका दे-दे फिर से
उनसे गुड़ि‍या की ज़ि‍द्द करने का
थामकर उनकी अंगुली
जीवन की फिसलनभरी राहों पर संभलने का

दिन-रात सताने-रुलाने वाली बहना 
परीक्षा के दिनों में हर विध साथ निभाती थी
बोल-बोलकर याद कराती हर सबक 
खुद ही किताब बन सामने खुल जाती थी

मुझे फिर उसके पीछे बैठ साइकिल पे
बर्फ का गोला खाने जाना है
पहले जमकर लड़ना फिर सिरदर्द होने पर
कनपटियों पर उसका स्‍नेहिल स्‍पर्श पाना है

छूट गए वो संगी-साथी
जिनके साथ अजब-अनोखी यारी थी
जिस सखी से लड़ बैठे सुबह-सवेरे
शाम उसी के साथ खेलते हुए गुज़ारी थी

मुझे फिर पहन के पापा की ऐनक
टीचर-टीचर का खेल रचाना है
बांधकर माँ की साड़ी
मेहमानों को 'रसना' पिलाना है

रूठ न मुझसे प्‍यारे बचपन
ले स्‍वागत में तेरे मैंने बाँहें फैलाईं
अरे! ये देखो तूफान-मेल सी दौड़ती
मेरी नन्‍हीं परी उनमें आ समाई

चल माँ, हम दोनों पकड़म-पकड़ाई खेलते हैं
मेरे सारे दोस्‍त हैं गंदे, मुझसे नहीं बोलते हैं 
रात तू मुझको झांसी की रानी की कहानी सुनाना
कल की तरह फिर अपने वादे से मुकर न जाना 

 साथ बिटिया के खेलते-कूदते 

मैंने वो निर्मल शांति पाई
बरसने लगा नेह का निर्झर
मन की कुटिया में फिर हरियाली छाई

धुल गए अवसाद के सब क्षण 
जीवन में नवल उत्‍साह छाया
पंथ निहारती रही जिसका बरसों 
वो बचपन बिटिया के रूप में फिर लौटकर आया


3 comments:

  1. Very nice. It reminded me of my childhood days.

    Beena

    ReplyDelete
  2. Ati sunder , it's really touching...
    well done keep it up ..

    ReplyDelete
  3. Dear Meetu, i am glad u remember that after teasing I used to help u too :). On a serious note, I am glad that you have begun to write.Keep on writing...and soul searching....All the Best!!!

    ReplyDelete