Friday 31 October 2014

आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी

ढल रही शनिवार की शाम    
कल है इतवार
एक दिन की ऑफिस की छुट्टी में 
कर डालूंगी अपनी लाडो को हफ्तेभर का प्‍यार

सुबह-सुबह जब वो नींदों में लेटी-लेटी कुनमुनाएगी
और लोटपोट होती बिस्‍तर पर मुझे टटोले जाएगी
चिपकाकर छाती से उसको पहले माथा सहलाऊंगी
फिर हौले-हौले देकर थपकियां मन-ही-मन गुनगुनाऊंगी
सो जा रानी, सो जा, आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी 

अलसाई आंखों को मलती जब वो मम्‍मा आवाज़ लगाएगी
छोड़कर सब चूल्‍हा-चौका कमरे की दौड़ लगाऊंगी
लेकर बलैयां उसके बिखरे बालों की  
बांहों के झूले झुलाऊंगी
जीभर के सुस्‍ता ले रानी, आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी  

डालकर काजू, किशमिश, केसर आज लाडो के लिए खीर बनाऊंगी
जो न भाई खस्‍ता पूड़ी, फटाफट गरम परांठा सेंककर लाऊंगी
इडली, आमलेट, पुलाव-सब होंगे एक इशारे पर हाज़ि‍र
खिलाकर एक-एक निवाला उसे अपने हाथों से, मैं भी तृप्‍त हो जाऊंगी
कर ले रानी जीभर कर नखरे, आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी

कल लाई जो बाज़ार से नया, उस स्विमिंग पूल में नहलाऊंगी
पहले भरूंगी पूल को रंग-बिरंगी गेंदों से फिर लाडो को उसमें बैठाऊंगी  
जब वो मस्‍ती में आकर करेगी छप-छप
और अपनी नन्‍ही अंजुरि में भर-भरकर पानी मुझे भिगोएगी
खूब खेलूंगी लाडो के साथ बेमौसम होली, आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी

लो हो गई शाम, लाडो मचल रही है बाहर जाने को
नज़र न लग जाए कहीं किसी की, सबसे पहले काला टीका लगाऊंगी
फिर पैरों में डालकर क्रॉक्‍स, बालों में मैचिंग क्लिप्‍स सजाऊंगी
जब खेलेंगे हम पकड़म-पकड़ाई उसके साथ मैं भी बच्‍ची बन जाऊंगी
घर लौटकर सबसे पहले उसके नन्‍हे पैर दबाऊंगी, आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी

पर ज्‍यों-ज्‍यों घिरेगा अंधेरा, मन-ही-मन कच्‍ची पड़ती जाऊंगी
कल फिर जाना है ऑफिस, यह सोच-सोच घबराऊंगी  
लाडो को तो बहला लेंगे सब मिलकर पर मुझे कौन समझाएगा  
मेरे मन में उमड़ते-घुमड़ते भावों की थाह भला कौन पाएगा 
सबके लिए तो ढलेगा सूरज पर मेरा तो सुख अस्‍ताचल जाएगा  

न कुछ कर सकी तो रात के लंबी होने की दुआ मनाऊंगी
रातभर चिपटाए रखूंगी उसे कलेजे से
पर उगते ही सूरज फिर घड़ी की सुइयों का हुक्‍म बजाऊंगी 
सोती हुई लाडो की नन्‍हीं हथेली के नीचे रखकर तकिया  
बुझे मन और भारी कदमों से एक बार फिर ऑफिस चली जाऊंगी  

5 comments:

  1. speechless....
    itna acha kaise likh late ho yar ...

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  2. हौंसला अफज़ाई का शुक्रिया :)

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  3. Very touching and pictorial, indeed. i felt as if i was living the moments with my daughter you have portrayed in your poem. kudos! keep it up.

    Beena

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  4. Very expressive. .I read all ur blogs, but loved this one the most...can actually connect with it...keep writing

    Anjoo

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  5. thanks anjoo...appreciation from a close friend like you means a lot to me. i am glad that you gave ur precious time to the blog. yes, this poem is a story of every working woman who moves out to earn bread and butter leaving her heart back home with her baby. keep visiting.

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