Tuesday, 24 October 2017

चुनमुन और जंक फूड

आज स्‍कूल में शनि‍वार की छुट्टी थी। हर छुट्टी की तरह चुनमुन चूहा माँ के जगाए बिना ही सुबह-सुबह उठ बैठा था। माँ को शनि‍वार को भी ऑफिस जाना होता है, सो वो तैयार हो रही थीं। उन्‍होंने चुनमुन के दूध का मग टेबल पर रख दिया था पर चुनमुन दूध न पीकर माँ के अगल-बगल उछल-कूद कर रहा था। कंधे पर बैग टांगकर माँ ने चुनमुन को प्‍यार किया, फिर उसे जल्‍दी से दूध खत्‍म करने और फ्रिज में रखा हैल्‍दी फूड ठीक से खाने की हिदायत देकर स्‍कूटर स्‍टार्ट कर दिया।  

इधर माँ चलीं और उधर चुनमुन मस्‍ती में स्‍कूटर से रेस लगाने लगा। पर कहाँ सरपट भागने वाला स्‍कूटर और कहाँ नर्सरी में पढ़ने वाला नन्‍हा चुनमुन?! स्‍कूटर तो पलक झपकते ही कहाँ-का-कहाँ नि‍कल गया और चुनमुन भी उसके पीछे भागता-भागता घर से दूर जाने कहाँ-का-कहाँ ही पहुँच गया। कुछ देर बाद जब उसकी सांस फूलने लगी तब कहीं जाकर उसे लगा कि वो घर से बहुत दूर नि‍कल आया है और रास्‍ता भटक चुका है।  

अचानक उसने देखा कि एक बिल्‍ली दबे पाँव उसकी तरफ बढ़ रही है। पहले तो वो डर के मारे थर-थर कांपने लगा, फिर उसे माँ की बात याद आ गई कि डरने से कुछ नहीं होता, कोशिश करने से होता है’, बस फिर उसने मन-ही-मन कुछ ठाना और पूरा ज़ोर लगाकर भागा। चुनमुन की माँ उसके टिफिन में रोज़ हैल्‍दी फूड रखती थीं और घर पर भी सिर्फ संडे को ही जंक फूड खाने देती थीं। इसलिए छोटा होने के बावजूद चुनमुन खूब ताकतवर और फुर्तीला था। जब वो अपनी पूरी ताकत लगाकर दौड़ा तो बिल्‍ली मौसी बहुत पीछे छूट गईं। चुनमुन ने एक बार जो भागना शुरू किया तो तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखा जब तक वो जंगल से बाहर नहीं नि‍कल आया। भागता-भागता चुनमुन नंदनवन से सटे दिल्‍ली में स्‍वरा की सोसाइटी तक जा पहुँचा और अपनी जान बचाने के लिए पानी के पाइप पर चढ़कर स्‍वरा के फ्लैट में घुस गया।

स्‍वरा अपने मम्‍मा-पापा और दादू-अम्‍मी के साथ रानीखेत घूमने गई हुई थी, इसलिए घर बिल्‍कुल खाली था। सुबह से भूखे चुनमुन के पेट में चूहे कूद रहे थे। सबसे पहले उसने फ्रिज खोला। फ्रिज में दो सेब, दो-चार अमरूद, कुछ टमाटर और दूसरी सब्जिया रखी थीं जो उसके लिए हफ्तेभर को भी काफ़ी थीं। सबसे पहले उसने एक अमरूद खाया। जान में जान आई तो घर का मुआयना करने लगा। किचन में पहुँचा तो उसके नथूने खाने-पीने के सामान की मिली-जुली खुशबू से भर गए। उसने स्‍नैक्‍स का बड़ा डिब्‍बा खोला तो सबसे पहले नि‍कला मैगी का एक पैकेट, फिर कुछ चिप्‍स के पैकेट, नूडल्‍स और पास्‍ता। ये स्‍वरा का संडे स्‍पेशल स्‍टॉक था। चुनमुन की तो लॉटरी लग गई। उसने जमकर मैगी खाया, फिर जब फ्रिज में कोल्‍ड ड्रिंक भी मिल गई तो उसकी तो मौज ही लग गई।

अब यह चुनमुन का नंदनवन तो था नहीं जो उसके साथ खेलने वाले संगी-साथी यहां होते। इसलिए अब चुनमुन का बस एक ही काम रह गया था। रोज़ जंक फूड खाना और जमकर सोना। लेकिन वो नहीं जानता था कि सोसाइटी में रहने वाली एक बिल्‍ली बहुत दिनों से उसे खाने की फ़ि‍राक में थी। एक दिन जब चुनमुन चिप्‍स का पूरा पैकेट खाकर घर में बालकनी में आराम कर रहा था कि तभी बिल्‍ली मौका पाकर उसकी तरफ लपकी। चुनमुन दुम दबाकर भागा। पर ये क्‍या?! आज तो उससे बिल्‍कुल नहीं भागा जा रहा था। रोज़-रोज़ जंक फूड खा-खाकर वो बहुत मोटा हो गया था। कई दिनों से उसने न दूध पिया था, न ही फल-सब्‍ज़ी को हाथ लगाया था इसलिए उसका शरीर तो फूल गया था पर उसमें से ताकत नि‍कल गई थी। ऊपर से इतने दिन से खेलकूद भी बंद था। पर जान पर बन आई थी तो भागना तो था ही। अब आगे-आगे चुनमुन और पीछे-पीछे बि‍ल्‍ली। वो तो अच्‍छा हुआ कि बि‍ल्‍ली खुद जंक फूड खा-खाकर इतनी मुटिया चुकी थी कि चुनमुन जल्‍द ही बहुत आगे नि‍कल गया और वो हांफती हुई एक पेड़ के नीचे बैठ गई।

उधर, नंदनवन में चुनमुन की माँ का रो-रोकर बुरा हाल था, इसलिए सारे रिश्‍तेदार आसपास के शहरों में उसकी तलाश में नि‍कले हुए थे पर इतने दिन चुनमुन सोसाइटी से बाहर नि‍कलता तो कोई उसे खोज पाता न! भागता-भागता जैसे ही वो मेन रोड पर पहुँचा, उसे मोटरसाइकिल पर अपने मामाजी नज़र आ गए। वो कूदकर बाइक पर चढ़ गया। सबसे पहले उसने मन-ही-मन खुद से वादा किया कि अब से कभी बिना किसी से पूछे अकेले घर से बाहर नहीं नि‍कलेगा।

आज की घटना से उसे अच्‍छी तरह समझ आ गया था कि माँ हर वक्‍त हैल्‍दी फूड पर क्‍यों ज़ोर देती थीं, वो रास्‍तेभर गुनगुनाता रहा,
‘‘फल, सब्‍ज़ी, परांठा,
ताकत और सेहत दें ज्‍यादा।
ब्रेड, बर्गर, पिज्‍ज़ा,
अब से सिर्फ संडे को बाबा!’’