गलती किसकी?
कुछ समय पहले एक खबर पढ़ी थी कि टीचर की अश्लील हरकत और
पंचायत के
मामले को
रफ़ा-दफ़ा करने से परेशान होकर
एक किशोरी ने
आत्महत्या कर
ली, यानी जाने-अनजाने उसे उस जुर्म की सजा मिली जो
उसने किया ही नहीं था। यह
शर्मिंदगी की
बात ही
है कि
आए दिन हमारे अखबार यौन-अपराधों से
जुड़ी खबरों से भरे पड़े रहते हैं, वहीं टीवी चैनलों पर भी
ऐसे दर्दनाक किस्सों की
भरमार रहती है। हर
बार ऐसे मामले मन
में एक
ही सवाल छोड़ जाते हैं कि
हमारे समाज का यह
कैसा दोगलापन है जो
यौन शोषण के हालात पैदा करता है, पुरुष को बच
निकलने की
गुंजाइश भी
देता है, लेकिन पीड़ित स्त्री को
सिर उठाकर जीने का
हक तक
नहीं देता।
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''गलती किसकी'' |
कोई शक नहीं कि
पूरी तस्वीर ही अफ़सोसनाक है, पर इस
पूरे मामले में जो
बात सबसे ज्यादा परेशान करती है
वो ये
कि यहां लड़की के
साथ अश्लील हरकत की
गई थी, उसका बलात्कार नहीं हुआ था, फिर भी
उसने अपनी जान ले
ली। बेशक, छेड़छाड़ या
अश्लील हरकत को अपराध के पैमाने पर बलात्कार से कम नहीं आंका जा
सकता, पर आखिर हमने यौन अपराधों को इतना बड़ा मान ही क्यों लिया है
कि उनके आगे महिलाओं का वजूद ही बौना हो गया, उनकी जान की कीमत ही शून्य हो गई? क सवाल जो सारे शोर में कहीं खो
गया वो
ये कि
किशोरी ने
आत्महत्या टीचर से मिली शारीरिक प्रताड़ना के चलते की
या समाज की खा
जाने वाली नजरें और
मामले को
दबाने की
कोशिश इसकी वजह बने। घटना के
कई दिन बाद ऐसा कदम उठाना तो यही संकेत देता है कि
दूसरी वजह ही ज्यादा बलवती रही होगी। पर-पुरुष का स्पर्श भी
स्त्री के
लिए पाप है जैसी न जाने कितनी ही
सीखों का
पुलिंदा उस ग्यारह बरस की
किशोरी के
मन में गहरे दबा होगा जिसने उसे इतना बड़ा कदम उठाने को
मजबूर किया।
बेशक, यौन शोषण या
इस कड़ी में बलात्कार एक गंभीर अपराध है, पर इसलिए नहीं कि यह
स्त्री के
शील से
जुड़ा है, बल्कि इसलिए कि ये
एक स्वतंत्र अस्तित्व
वाले जीते-जागते प्राणी
की दैहिक स्वतंत्रता का
खुला उल्लंघन है। उपर्युक्त मामले में ऐसा नहीं था
कि किशोरी के माता-पिता ने उसका साथ न दिया हो, लेकिन फिर भी
उसने खुद को जीने लायक नहीं समझा। शायद इसलिए कि
हमारे तथाकथित सभ्य समाज में यौन-अपराधों को लेकर जैसी हाय-तौबा मचती है, वैसी शायद कहीं नहीं। ऐसे आदिवासी समाज भी हैं जहां बलात्कार के
मामलों की
संख्या हमारे तथाकथित सभ्य समाजों की
तुलना में बहुत कम
है, फिर अगर वहां कोई लड़की ऐसी वारदात का शिकार हो भी
जाए तो
आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होती, लेकिन हमारे यहां शायद ही कोई लड़की होगी जो यौन हिंसा का
शिकार होने की बजाय मर जाना पसंद नहीं करेगी। खुदा-ना-खास्ता ऐसी अनहोनी हो
जाए तो
ऐसा ही
करती भी
हैं। इस
तरह यह
मसला केवल स्वतंत्रता ही
नहीं, बल्कि किसी स्त्री के जीने के बुनियादी अधिकार
से भी
जुड़ा है।
जब तक हम न
केवल ऐसी घटनाओं को
रोकने, बल्कि उनके होने के लिए भी खुद को तैयार नहीं कर
लेते, तब तक ऐसे ही मासूम जानें जाती रहेंगी। समझ नहीं आता कि आखिर दुर्घटना घट
जाने के
बाद ही
हम अपनी बेटियों के
आंसू क्यों पोंछते हैं? क्यों उन्हें शुरू से
ही जिस्मानी और ज़ेहनी तौर पर इतना मज़बूत नहीं बनाते कि
ऐसी नौबत आने पर
जमकर प्रतिरोध कर सकें। कम-से-कम अन्याय
का शिकार होने पर
आत्मग्लानि तो
न पालें। लेकिन उस
समाज से
ऐसी उम्मीद कैसे की
जा सकती है, जहां किसी लड़की के समाज में सम्मान की कसौटी ही उसका कौमार्य हो, जहां अदालतों में रस
ले-लेके उसके साथ हुए दैहिक शोषण का मामला परोसा जाता हो और
ऐसे मामलों की सुनवाई में सबसे ज्यादा भीड़ जुटती हो।
बहरहाल, इस प्रसंग से
कुछ वक्त पहले तक
टीवी पर
आने वाले एक विज्ञापन का ख्याल हो
आया जहां गर्भनिरोधक का
विज्ञापन आते ही बच्चों के साथ टीवी देख रहे माता-पिता असहज हो उठते हैं और
बच्चों को
किसी काम के बहाने कमरे से
बाहर भेज देते हैं। जब हम
अपने बच्चों के साथ बैठकर ऐसे विज्ञापन तक
देखने की
हिम्मत नहीं जुटा सकते तो भला कैसे इस
विषय पर
उनके साथ चर्चा कर
सकेंगे? कैसे अपनी बेटियों के मन
में ये
बात बिठा पाएंगे कि
वे सिर्फ हाड़-मांस का
पुतला न
होकर तन-मन के जोड़ से बना एक व्यक्तित्व हैं? कैसे अपने बेटों के
मन में नारी-शरीर के
लिए सम्मान जगा पाएंगे?
अगर हम
यूं ही
चुप्पी धरे रहे तो
विकल्प क्या है? शायद कुछ नहीं! तब शायद हमें उस
जोखिम के
साथ ही
जीना होगा जब या
तो किसी बेटी के
यौन हिंसा के शिकार हो फांसी लगाने की
खबर कानों में पड़ेगी या फिर किसी बेटे के ऐसे कुकृत्य को
अंजाम देने के बाद हमारा सिर खुद-ब-खुद शर्म से झुक जाएगा।
(जनसत्ता में प्रकाशित)
संवेदनशील नज़रिया
ReplyDeleteशुक्रिया :)
DeleteWell written and well connected with current situation in India, Good job Meetu.
ReplyDeleteThanks phuphaji. Your words of appreciation mean a lot to me.
DeleteVery well written.
ReplyDeletevery good written. keep it up.
ReplyDeleteThanks :)
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